अब्बु की रोटी
वादी मे गहरा सन्नाटा था। पेहले यहि सन्नाटा खुबसुरत था आज देहशतग़र्द हे। और क्युँ न हो, कुछ चन्द दिनो पहले कई मासूमो के सिंने छल्ली हुए थे।
'पहलगाम', जो वादी-ऍ-कश्मीर का एक खुशनुमा सा शहर था आज खुन से लतबत था। और खुन बहा था कुछ मुसाफिरों का, कि जो अमरनाथ दर्शन को जा रहे थे। दहशतगर्दो ने जिहाद का नाम लेके बंदूके तनी और जिन्हे उन्का मजहब काफ़िर कहता हे उनकी रूहों को उनके जिस्म से अलग कर दिया।
मजहब का नाम पर कुछ लोगों कि हैवानियत हि थी वो। वरना कौनसा खुदा किसी मासूम कि जान लेनेपर खुश होग़ा और खुद को मुजाहिद कहनेवाले इन् हेवनो को जन्नत बक्षेगा। मरनेवालों में उन् काफिरों के साथ मुजाहिदों के उनके कुछ हम-मज़हबि भि थे। पर बंदूक कहा मज़हब देखतीं हे, बंदूक कहा मज़हब समजती हे?
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३ दिन हो गये, रफ़ीक मिया ने कुछ नहि खाया। सुबह देर तक बिस्तर मे लेटे रेहते थे। कभी चद्दर में मुँह छुपाए, कभि छत को ताकतें। दोपहर में कहि चले जाते और शाम को देरसे आते। और आते ही बरामदे में कुर्सी बिछाई बैठ जाते, तारोँ को तकने रहते। ना किसीसे बात करते नाही किसीभी बात क ज़वाब देते। जैसे किसीने ज़ुबान ही छिनलीं हो। बेरुखा , चिड़चिड़ा, बेचैन से रहते , जैसे की किसी ने सुकून छिन लिया हो।
सबकुछ तो छिन गया था उनका। 'पहलगाम' के उस हादसे ने उनसे उसकि रुबीना को छिन लिया। रुबीना उनकी बीवी ही नहि उनकी हमनवा, सब्से अज़ीज़ दोस्त औऱ सबकुछ थी। उस दिन वादि में चली गोलियों मे ८ गोलियों ने उसका भी जिस्म छल्ली छल्ली करदिया थ।
अब घर मे बस दो ही लोग बचे थे। रफ़ीक मियाँ और उनकी चाँद सी बेटी " शकीना "। महज़ ४ साल की मासूम सी, परी सी; परवरदिगार की देन ही थी वो । उस मासूम को तो इतनि भि न खबर थि की ३ दिनों से उसकी अम्मी दिख क्यु नहि रहि ? अभी ३ दिन पहले ही तो देखा था उसने, लेटी हुई थी फर्श पर; सफ़ेद चादर ओढ़े।हाँ माहौल कुछ अजीब सा था उस दिन। काफी लोग जमा हुए थे इर्द-गिर्द । अब्बु भी पता नहि क्युं सिसक सिसक के रौं रहे थे? और इतनी आवाज़ में भी अम्मी थि जो सुकून से सो रहि थी।
बस वही आखरी दिन था जब वो अपने अम्मी -अब्बु से मिली। अम्मी को हादसा निगल ग़या और अब्बु को हालात निगल रहे थे। बेजान लाश की तराह हि उस्के अब्बु घर मे घुमते हे। न उससे बात करते हे न उससे खेलते हे।२ बार नन्ही सी जान ज़िद कर बैठी। एक बार थरथराने वाली डाँट मिली तो एक बार कपकपानेवाली मार। गंट्टो तक रोती रहती थी वो मगर कोइ चुप करानेवाला न था।
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वो चौथा दिन था उस हादसे का, और चौथा दिन रफ़ीक़ मिंया ने कुछ नहि खाया था। सुबह कब की हो चुकी थी, सूरज माथे पर था। और रफ़ीकमियां तकिये में मुह छुपाये लेटे हुए थे । कल रात उनके कमरे से रोने की आवाज़े आ रहि थी। अभी भी उनकी आँखे सूजी हुई और लाल थी। उनको शकीना पे हाथ उठाने का बेहद अफसोस था। वो पूरी रात उसी सोच मे सो न सके।
वो बिस्तर से उठे। उनकी नज़र शकीना को तालाशने लगीँ। शरीर वैसेही भूख से कमज़ोर था और ऊपर से उस नन्ही सी जान पे किये सितम् का गिला उनके सीनेपे बोज बना था। वो शकीना को गले लगाकर उसे हल्का करना चाहता था। मगर शकीना उन्हें घरमें कहि नहि दिखी। उन्होंने घर का कोना कोना तलाशा, मगर वो नहि थि। उनका दिल बैठ गया और ज़हन अफ़सोस से भारी होग़या। फ़िकर उनके आँखों से आँसु बन टपकने लगि। बेकाबू बन वो घर के हर सिरे को बार बार तलाशते रहे मगर वो नहि मिलि।
उतने में हि बाडे से कुछ बर्तनो की आवाज़ आई वो दौड़ के उस तरफ गए। वहा देखा तो बाड़े में हल्का सा धुआं था, चुल्हा जल रह था, और चूल्हें कि उपर तवे पे एक जली हुई सि रोटि थि। कल जिसको तमाचे जडे थे वहीँ उनकि नन्हीसी गुड़ियाँ "शकीना" की जो कल तक अब्बु के हाथ से निवाले खाती थी , आज अब्बु के लिये रोटी सेक रहि हे।
रफ़ीकमियां को देखतेहि शकीना बॉली '' अब्बु , रोटी खालो। "
Note :
On 1 August 2000, 32 people were
killed by Kashmiri separatist militants in “Pahalgam” town
located in Anantnag district, Kashmir, India.Of the 32
persons killed in the attack at the base camp, 21 were Amarnath pilgrims and
seven Muslims, mainly shopkeepers and porters.
